मार्च 17, 2011

कहीं धुंधुली सी है "साधारणता"

एक अख़बार के संपादक ने अपने संपादकीय लेख पर नीचे वाले सवाल डाला, जैसे अपने से और दोसरे पाठकों और सारे समाज से पूछ रहे.
क्या यह अभी बुरा सपना देख रहे हैं हम ? या फिर, इस भारी तबाही मचने तक हम जिस लंबी नींद में सोए थे, उससे जागकर हक़ीक़त का सामना करने को है वक़्त ?
जैसे इस सवाल ने एक दिशा सुझाई, शायद भाड़ी प्राकृतिक आपदा का सामना कर हमें उसके भय और अपनी विवशता के सोच में डूबना छोड़ कुछ और करना बाकी है.


पिछले शुक्रवार दोपहर में विनाशकारी महाभूकंप और त्सुनामी आने के बाद, अब पूरे पांच दिन हो गए हैं. यहाँ तोक्यो में तो सामायिक अव्यवस्था और आशंकाएँ जो शुक्रवार को घने से घने हो रही थीं अब काफ़ी कम हो जा रही हैं, जबकि उत्तर-पूर्वी जापान के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बचाव और जाँच के कार्य विस्तृत होते ही नई-नई जानकारियाँ हमारे सामने आने लगी हैं.

हाल ही में प्रभावित क्षेत्रों से आने वाली ख़बरों में कई तो ऐसी हैं कि त्सुनामी-तबाही से पीड़ित शरणार्थियाँ कुछ दिनों से लापता रहे अपने-अपने परिवार सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त से आँसूभरी पुनर्मिलन कर पाए. फिर भी ज़्यादातर ख़बरें तो बेहद दर्दनाक ही होती रही हैं. जैसाकि, त्सुनामी-लहरों के बहाव में कौन-कौन निगले गए, कहाँ कितने-कितने शव मिले, और मलबों के बीच नष्ट हो चुके अपने घर से कैसे सामना करना पड़ा, आदि. दिनबदिन बढ़ती ही तो जाएगी मृतकों की संख्या. मगर इसके पीछे ज़रूर होती हैं असंख्या दुखद कहानियाँ, जिनमें से बस थोड़े ही अंश अब मीडिया में कथित हु होते हैं.

मुझे कुछ दृढ़ता से महसूस हो रहा है कि क़ुदरती मुसीबतों का क़हर तो क्यों न हो हमारी कल्पना के बाहर, उसी क़हर से आम लोगों की जो रोज़मर्रा ज़िंदगी बर्बाद की गई और उनकी जो वर्तमान में असहाय स्थितियाँ चल रही हैं, वही तो सब हमारी भी हो सकती थीं (और, बेशक, अभी भी आगे किसी वक़्त हो सकती हैं). शायद इसी वजह से मुतासिर लोगों की ग़मगीन दास्तानें कभी कभी सुनने-देखने को हमसे बर्दाश्त नहीं होती हैं...



जहाँ तक मेरी और आसपास शहर की हालत का सवाल है, पीड़ित लोगों से विपरीत वैसे हालत शायद कुछ बिगड़ी भी नहीं कही जा सकती. न मेरे घर में और नज़दीक दुकानों में ख़ुराक व पेट्रोल आदि ज़रूरी चीज़ें ख़त्म हुई हैं, न बिजली पानी और गैस की लाइनें बंद हुई हैं, न कि रात को अंधेरों में ठंड और भूख झेलनी पड़ी हैं. ऐसे मायने में तो अभी हमारी दैनिक जनजीवन में कोई गंभीरता नहीं आ रही है और एक नज़र तो बिल्कुल दिखता है जैसे सब कुछ ठीक-ठाक चल रहे हों.

हालांकि यक़ीनन भूकंप ने दिल में कहीं गहरे से अपना छाप छोड़ डाला है.

आफ्टरशॉक यानी मुख्या भूकंप के बाद आने वाले झटकों पर प्रतिक्रया होती है. इन दिनों बहुत अक्सर छोटे-मोटे झटके आते रहे हैं और जब कहीं झटकता महसूस हुआ तो इसके प्रति पहले की तुलना आजकल कई गुणा ज़्यादा सचेत हो रहा हूँ. तनाव भी कहीं ज़्यादा होती है. सरकारी एजेंसी की तरफ़ से चेतावनी दी जा रही है कि आगे कई दिनों में फिर से बड़े भूकंप होने की काफ़ी संभावना बची हुई है. सो, रात की नींद भी कहीं उथली होती है और हलके झटके से भी उड़ जाती है.

सामाजिक प्रभाव भी काफ़ी हो रहा है. जब कल खरीदारी करने सुपरमार्केट गया तो बोटल पानी से लेकर चावल रोटी और इन्स्टैंट नूडलज़ तक कई तरह के खाद्य पदार्थ उस दुकान के शेल्फ़ से बिल्कुल ग़ायब हो गए थे. रास्ते पर कई पेट्रोल स्टेशनों पर गाड़ियों की लंबी लाइन लगी हुई थी और खारीदारी पर दस लीटर तक का प्रतिबंध लगाया गया था.

परमाणु संयंत्र से रिस रहे रेडियोधर्मी पदार्थों को लेकर भी काफ़ी चिंता जताई जा रही है. अब हालत देखते ही देखते बद से बदतर हो जाती नज़र आ रही है. लोगों के बीच डर होता ज़रूर है, फिर भी वह किसी स्तर (और शायद किसी क्षेत्र) तक ही सीमित होता है.

इन चार-पांच दिनों से तोक्यो निवासियों को बिजली कटौती और इसकी आशंका ने सबसे ज़्यादा छेड़ा है. यह हालत इस कारण हुआ कि कई उर्जा संयंत्र बंद होने के बाद बिजली उत्पादन काफ़ी घट गया, और राजधानी क्षेत्र के लिए कमी हो रही है. अब पिछले सोमवार से बिजली कंपनी से ऐलान दी गई है कि तोक्यो और पड़ोसी आठ प्रांतों के विशाल क्षेत्र को अब पांच समूहों में बांटा जाता है और हर समूह के कई इलाकों में प्रतिदिन लगबग तीन घंटों के लिए बारी-बारी से बिजली कटौती होगी. जापान में ऐसी योजित बिजली कटौती की जाना, वह भी इतने बड़े पैमाने पर, बिल्कुल असामान्य बात है. इस लिए जनजीवन में अफरा-तफरी मच रही है.

इस तरह तोक्यो में भी, जहाँ आपदा प्रभावित क्षेत्रों से लोग शारीरिक और कुछ मानसिक रूप से दूर रहे हैं, कहीं न कहीं जनजीवन पर गहरा प्रभाव हो रहा है....

मार्च 11, 2011

क़यामत-सा दिन

भूकंप के वक़्त घर पर था और बड़ी ख़ुश क़िस्मत थी कि सब सलामत रहे हैं हमारे यहाँ तो. लेकिन लोग बेहद ख़ौफ़ज़दा रह गए हैं. इतना ज़ोरदार झटका कभी आया नहीं था कि घर के अंदर तो क्या, बाहर सब नज़ारों में दुनिया हिल रही थी.

फ़िलहाल मोबाइल वग़ैरह फ़ोन सेवा तो सुस्त या बिल्कुल बंद हो रही है. नगरपालिका की तरफ़ से घोषणा मिली है कि बिजली भी कई क़रीब शहरों में बंद हो रही है. न्यूज़ में कह रहा है कि तबतक तोक्यो राजधानी क्षेत्र में कम्यूटर ट्रेन की लाइनों पर रोक लगाई जा रहेगी जबतक ट्रेन की पटरियों पर जाँच पूरी न हो, और टीवी पर घर लौटने को इच्छुक यात्रियों की बड़ी भीड़ स्टेशनों पर लगी हुई नज़र आ रही है. ऐसा भी कह रहा है कि यह रोक आज सारी रात के लिए हटेगी नहीं, इस लिए बदले में उपलब्ध किए जाने वाली बस सेवा और टक्सी पर लंबी-लंबी कतारें लग रही हैं.

शाम ढलते ही अँधेरा छाया और साथ ही काफ़ी ठंड हो रही है. अभी शारीरिक रूप में तो ख़ासा नुक़सान नहीं हुआ, बल्कि मानसिक तौर पर कुछ प्रभाव हो रहा है. बहुत परेशान हो जाते हैं, जैसे बार बार टीवी न्यूज़ में तटीय इलाक़ों में त्सुनामी से मची तबाहियाँ देखकर, और, अब तक न थमने वाले भूकंपोत्तर लहरों को महसूस करके.


इन दसेक सालों में भूकंप की तबाहियों के बारे में अनगिनत ख़बरें देखा करता रहा था, पर पक्के मायने में तो तसव्वुर नहीं कर पाई थी और कहीं लगता था कि अपने ऊपर ऐसा नहीं होगा. अब ऐसा एहसास तो बिल्कुल नहीं रह गया है.