दिसंबर 07, 2005

आवरण कथा : भारत

पिछले महीने न्यूज़वीक जापान-संस्करण के इस तरह के कवर थे...

यानी, लगातार दो अंकों में कवर स्टोरी के लिए भारत को चुन लिया गया.
पहला अंक है जिसमें भारत को देखते हैं उसकी व्यापारिक सक्षमता के नज़रिए से, दूसरा है राजनैतिक सक्षमता के नज़रिए से. और कवर पर "インド" (भारत) के नीचे ऐसे लिखे हैं,
" 動き出す巨象経済 "
 (चलने लगा है महा-हाथी अर्थव्यवस्था)

" 超大国の誇りと野望 "
 (सुपर-पॉवर का गर्व और आकांक्षा)

दरअसल इन कई सालों से आम जापानी लोगों के बीच भारत की छवि थोड़ी-बहुत बदल चुकी है...

प्राचीन युग से तो बौद्ध धर्म का सुदूर देश था भारत. फिर आधुनिक युग की शुरूआत से द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत तक, इतिहास की हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी तरह दोनों मुल्कों को क़रीब ले आईं थीं, जब रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) और सुभाष चंद्र बोस यहाँ आए, मेरी यूनिवर्सिटी के हिंदी-उर्दू विभागों (जो पहले एक ही हिंदुस्तानी विभाग थे) की स्थापना भी हुई. युद्ध के बाद भी एक न्यायाधीश, राधा बिनोद पाल थे, जिन्होंने तोक्यो युद्ध-अपराध न्यायाधिकरण में अकेले ऐसा अनुरोध किया कि तब तक जापान निर्दोष ही है जब तक न्याय की समानता के अनुसार जय पाने वाले देशों को भी अपने युद्ध-अपराध का दोष न लगाया जाए.
शीतयुद्ध के दौरान जापानी सरकार के विदेश-नीति के नक़्शे में भारत थोड़ा दूर हो गया था, जहाँ सत्थर के दशक में जापानी नागरिकों के लिए विदेश-यात्रा आज़ाद होने के बाद भारत ऐसी यात्रियों की बड़ी मंज़िल होने लगा. फिर भी आम लोगों के बीच भारत की छवि जैसी की तैसी रही थी.
नब्बे के दशक से दुनिया में भूमंडलीकरण का असर काफ़ी साफ़ नज़र आने लगा और आज की इस मशहूर कहानी कहीं भी सुनाई देने लगी है कि भारत और चीन, तीन अरब लोगों के, यानी दुनिया की एक-थिहाई आबादी वाले देश ही बनेंगे आगे इक्कीसवीं शताब्दी में सुपर-पॉवर. सो ऐसी सिलसिले में यह पत्रिका भी ऐसी तरह निकली है.

माहौल केवल 5-6 साल पहले भी ऐसा था कि तब भारत के नाम को आई टी से जुड़ाने वाले लोग बहुत कम ही होते थे और भारतीयों को रोज़ देखने का मौक़ा भी ज़्यादा नहीं था सिवाय भारतीय रेस्ट्राँ के. सन् 2000 में पूर्व जापानी प्रधानमंत्री योशिरो मोरी (森 喜朗) भारत आए, जिसके बाद दोनों देशों के बीच एक वीज़ा-समझौता किया गया. अब भारतीय आई टी इंजीनियरों को तीन साल तक लागू मल्टिप्ल-व्यापारी-वीज़ा मिल सकता है, और फ़िलहाल लगभग 14000 (दस साल पहले 4000) भारतीय नागरिक जापान में रहते हैं जिनमें 3000 ऐसे इंजीनियर हैं. अब भारत के साथ करी के देश वाला पूर्वाग्रह भी बदल रहा है.

दूसरी तरफ़ जापान में काम करने वाले भारतीय इंजीनियोरों और उनके परिवारों के लिए कई तरह की सुविधाएँ भी तैयार हो रही हैं.
जापान में रहने के लिए भाषा एक समस्य तो होती है क्योंकि यहाँ अंग्रेजी में ही ख़रीदारी जैसा कुछ रोज़ाना काम करना उतना आसान नहीं है जितनी आसानी से अमरीका या अन्य पश्चिम देशों में ऐसा काम हो जाएगा. फिर भी पहले आए भारतीय पड़ोसियों से सामूहिक सहारा ले सकें तो कोई लफड़ा-वफड़ा नहीं होगा. और पहले से बड़े शहरों में कहीं न कहीं पाकिस्तानी या बंगलदेशी मालिकों की हलाल-दुकानें होती हैं, जहाँ मिलते हैं मुसलमानों के हलाल-गोश्त के अलावा मसाले-दाल जैसे बुनियादी खाद्य उत्पादन, कपड़े, फ़िल्म की कॉपी वीडियो, साबुन-शैंपू जैसे कॉस्मेटिक्स, वग़ैरह हर ज़रूरतों के पदार्थ. अब ऐसी चीज़ें इंटर्नेट पर भी इधर उधर ख़रीद सकते हैं बिना घर से बाहर और दूर तक जाके.
बच्चों की पढ़ाई के लिए तो पिछले साल तोक्यो में एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय स्कूल शुरू हुआ है, जो स्थानी पब्लिक-स्कूल (जापानी मीडियम, फ़ीज़ मुफ़्त) और निजी इंटर्नेशनल-स्कूल (अंग्रेज़ी-मीडियम, फ़ीज़ हाइ) के अलावा माता-पिताओं के लिए अच्छा विकल्प बन सकता है.

ऐसे भी लिखा है, आज से कई सालों में जापान में रहने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या और बढ़ सकती है. तो आगे मेरी हिंदी भी कुछ काम तो आएगी, या...??

सितंबर 09, 2005

ऑटरिक्श पे भी शेर...

आजकल खींचा मनपसंद फ़ोटो...




* * * * * * * * * * * * * * * *
कैई बह गये बोतल के इस बन्द
पानी में, डूबे जो पैमाने में निकले
ना फिर जिन्दगानी में

* * * * * * * * * * * * * * * *




...अरे, क्या हुआ यार?
…इंजिन ख़राब हो गई है?


...चलती रहे तेरी जिंदगी भी...

मार्च 23, 2005

ठंडी मतलब....चाय !!

आजकल जापान में भी वही चाय एकदम प्रसिद्ध और लोकप्रिय होती जा रही है, जो दूध-मसाले वाली इंडिया स्टाइल की है. इसी समय वह हाल इतना तक आ गई कि एक मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी ने पिछले महीने से अपने उत्पादनों में इंडिया-चाय शामिल किया है.

फिर भी वह तो गरम गरम तो नहीं....ठंडी ठंडी चाय ही....
.....यानी चाय फ़्लेवर आइस्क्रीम..... (120ml/250¥)
गत माह से टी.वी. पर विज्ञापन लगाया गया है, बार बार जो देखके मुझे अजीब सा लगा. सितार व तबला बजते हैं, न जाने क्यों साड़ी पहने हुई गोरी महिला पद्मासन में बैठी है, उसकी आँखें बंद हुई हैं और फिर हाथ में चाय आइसक्रीम लिए आराम करती है.

मशहूर आइस्क्रीम कंपनी "Häagen-Dazs" का ब्रांड यहाँ ऐसा माना जाता है कि दाम महँगा तो पड़ता है लेकिन वही मज़ा किसी दूसरों में कहीं नहीं मिलता. सोचा था कि यह वाला फ़्लेवर भी शायद अच्छा तो होगा मगर....कैसा...!?

आज ख़रीद लेके एक चम्मच चख लिया तो... वाह, ज़बान पर इलायची और दारचीनी की ख़ुशबू हलकी हलकी आती है. ठीक ठाक तो होगा, ठंडी हो तो भी फ़्लेवर चाय तो चाय का ही है, न आइस मिल्क टी का.

अब तो मुझे जानकारी नहीं है कि यह चाय वाला फ़्लेवर जापान के अलावा दूसरे देशों में भी मिलता (मिलेगा) या नहीं...

फिर चाय बोले तो...याद आता है वह चायख़ाना....
अहमदाबाद, शहर के पुराने इलाक़े मिर्ज़ापुर में तीनदरवाज़े के आसपास, "लकी टी स्टॉल".


जब अहमदाबाद में था, होटल के सामने ही वह दुकान खड़ी हुई थी, जहाँ हर सुबह नाश्ता करने और हर रात खाने के बाद चाय की चुसकी लेने जाता था. वहाँ की चाय उनमें से नंबर वन ही मनता हूँ जो चाय मैंने अभी तक पी लीं हैं.
और जब भी ख़ाली हो या बहुत बिज़ी, ओडर से थोड़ी ही देर में तेज़ चाय आती है. मगर हमेशा स्वाद बिल्कुल सही होता है. मतलब, अगर दूसरी दुकान में बिज़ी हो तो ज़्यादा जल्द ही जल्द बनाने से कच्ची बेकार चाय आ सकती है, और ख़ाली हो तो लंबी देर तक बना रखी खड़वी चाय मिल सकती है. ऐसा कभी नहीं हुआ उस दुकान में.

फ़रवरी 17, 2005

जापानी अक्षरमाला

[*22 Jan. 2012 - कुछ कुछ अंगों पर शब्दों-वाक्यों का संशोधन]

इस बार ज़रा दिखाता हूँ कैसे होते हैं वे पूर्वी एशियाई अक्षर, जो विशेष कर जापानी भाषा में प्रयोग किए जाते हैं. मेरी ख़्याल में जापानी भाषा उतनी मुश्किल नहीं है बोलचाल में, मगर सही ढंग से लिखना-पढ़ना बड़ा थकाऊ काम होगा, चुंकि कई विषयों में इसके अक्षरों में जटिलताएँ होती हैं.

एक वजह यह है कि आम तौर पर 3 तरह की अक्षर-लिपिओं से लिखी जाती है जापानी भाषा.
1. हीरा-गाना लिपि
2. काता-काना लिपि
3. कांजी लिपि

कांजी लिपि मूलतः चीनी भाषा(ओं) से ली गई हैं, जिनके रूप किसी हद तक समान होते हैं जहाँ भी हो, ताइवान, होंगकोंग और मेनलैंड चीन (मगर कम्युनिस्ट सरकार द्वारा साक्षरता के सुधार के मद्दे नज़र अक्षर-सरलीकरण नीति लाई गई जिससे कई अक्षरों के रूपों में कुछ अंतर हुआ है). पहले कोरिया और वियतनाम में भी प्रयोग की गई थी. ऐसे चीनी अक्षरों की एक विशेषता चित्रलिपि (ideogram) होने में है, यानी हर एक अक्षर शाब्दिक अल्पतम इकाई होता है, जिसका अर्थ स्वयं ही किसी न किसी तरह बन सकता है, किसी भी भाषा-बोली में कैसी तरह भी वह चीनी अक्षर उच्चारण किया जाता है तो भी. हम जापानी भाषी लोग भी रोज़ अपने तरीक़े से वे अक्षर लिखते पढ़ते हैं, सो जब चीनी भाषा के शब्द/वाक्य भी देखें तो किसी न किसी हद तक उसके अर्थ का अंदाज़ा लगा सकते हैं, चाहे वह भाषा सुनने से तो बिलकुल न समझ में आए तो भी.

जापानी भाषा भी पहले केवल चीनी अक्षरों से ही लिखी जाती थी. फिर उन अक्षरों से 2 क़िस्मों के लिपि, हीरा-गाना और काता-काना बनाकर मिश्रित ढंग से आजकल एकसाथ इस्तेमाल करते हैं. ये दोनों लिपि ध्वनिप्रधान (phonetic) हैं, जैसे नीचे वाली सूची में देखा जाता है. इस लिए सिद्धांत रूप में यदि कोइ चाहे तो पूरा वाक्या उन दोनों में से एक लिपि ही में लिखा जा सकता है. लेकिन नियमोनुसार ऐसा तो नहीं होता है. अगर कभी हो तो भी अजीब सा लगेगा, मानो बच्चों के लिए लिखा गया हो (मसलन पहेली कक्षा की स्कूल पाठ्य पुस्तकें). और एक समस्य है कि जापानी भाषा में बहुत से समध्वनीय भिन्नार्थक शब्द (homonyms) होते हैं (स्वदेशी मूल तथा चीनी भाषा मूल दोनों), जिसकी वजह से लिखित जापानी भाषा में चीनी अक्षरों का भी प्रयोग कर लिखना ज़रूरी है, ताकि बिना ग़लतफ़हमी ऐसे समध्वनीय भिन्नार्थक शब्दों के सही मतलब पहचान सकें.

आम तौर पर जापानी लोगों और जगहों के नाम कांजी-लिपि में रखे जाते हैं. फिर भी कुछ परिस्थितियों में, ख़ासकर लड़कियों के नाम, हीरा-गाना लिपि में भी बहुधा रखे जाते हैं, क्योंकि हीरा-गाना के रूप हलकी टेढ़ी लक़ीरों से बनते हैं, तो देखने में नरम, प्यारा और मधुर जैसा महसास होता है. और जापानी भाषा में ऐसे प्रतिरूप की जगह पर इस्तेमाल होता है, मसलन "-करता", "-एँगे", "है", "पर", "में", "-के लिए", "-से", "यह", "वहाँ", "कैसा" आदि.
काता-काना लिपि का इस्तेमाल कई परिस्थितियों में होता है, जैसाकि अनुकरणवाचक (onomatopoeic) शब्दों के लिए, और इससे भी अधिकतर विदेश मूल के शब्दों और विदेशी लोगों-जगहों के नामों के लए.

अब व्याख्या ज़्यादा हो गई, तो आगे वाली सूची देखें....



* नीचे सूची के जापानी स्वरों के लिए "आ" की जगह "अ", "ई" की जगह "इ", और "ऊ" की जगह "उ" का प्रयोग किया. यकीनन आप जब जापानी भाषा का बोलचाल सीखें तो ऐसा पाएँगे कि इन स्वरों का वास्तविक उच्चारण मामूली तौर पर बिलकुल उलटा ही होता है और अधिकाँश तौर पर "आ", "ई", "ऊ" के स्वरों में ही बोलना बहेतर होगा. मैं सहज रूप में हिंदी भाषी नहीं हूँ, इस लिए पता लगाना, अगर नामुमुकिन नहीं तो भी, कुछ कठिन होता है कि किन -किन स्वरों में जापानी शब्द का उच्चारण वर्णन किया जाना चाहिए. लेकिन यहाँ मेरा मकसद यह है कि जपानी भाषा के अंदर भी होने वाले छोटे-लंबे स्वर-अंतर के वर्णन पर ध्यान देते हुए, कम से कम तत्कालीन तौर पर पारिभाषित तो किया जाए.

*1 - *1 - *1 - *1 - *1

*2 - कि - कु - के - को
- *3शि - सु - से - सो
- *4 चि - *5त्सु - ते - तो
- नि - नु - ने - नो
- हि - *6 हु /फ़ु - हे - हो
- मि - मु - मे - मो
- यु - यो
*7 - रि - रु - रे - रो
- *8( वि ) - *8( वे ) - *9ओ /वो
*10न्


इस सूची को कहते हैं "हीरा-गाना गो-जू ओन ज़ु" यानी पचासा ध्वनि सूची (लेकिन अब 50 तक नहीं), जिसमें सबसे ऊपर 5 स्वर (vowels) श्रेणी, उससे नीचे वयंजनों (consonants) की श्रेणियाँ क्रमशः व्यवस्थित की जाती हैं. पारंपरिक तरीक़े से जापानी भाषा का वाक्य ऊपर से नीचे की तरफ़ लिखा जाता है, तो इस लिए यह सूची मौलिक रूप में तो ऊपर को दाईं, नीचे को बाईं तरफ़ होनी है.

बुनियादी तौर पर हर अक्षर ([न्] और कई अन्य अपवाद छोड़के) व्यंजन+स्वर, हमेशा दोनों जुड़े बना अक्षर (a syllable) होता है. इस लिए जब जापानी भाषा में विदेश मूल शब्द अपनाया जाता है तब उसके स्वरहीन व्यंजन (न् छोड़के) को देशी लिपि में लिखित रूप गढ़ने के लिए साधन नहीं है, और इसके बदले में ऐसा स्वरहीन व्यंजन से स्वर जोड़ना ही होता है. इस परिवर्तन का नतीजा यह है कि ज़्यादातर विदेशी मूल के, ख़ासकर अंग्रेज़ी मूल के जापानी शब्द गैर-जापानी भाषियों को कभी थोड़ी-बहुत अजीब सुनाई देते हैं, या बिलकुल समझ में नहीं आते है, क्योंकि बीच में मूलतः अनहोनी स्वर भी जोड़के बोले जाते हैं. स्वरहीन व्यंजनों को बोलने या लिखने के लिए आम तौर पर नीचे की तरह तबदीली होती है.

1.[क्/ग्/स्/त्स्/ज़्/प्/ब्/*र्/श्/ह्] = + [उ]
[ex;ストレス (stress, मानसिक दबाव) : सु-तो-रे-सु (←स्-त्-रे-स्)]

2.[त्/द्] = + (छोटा) [ओ]
[ex;トランプ (trump, तुरुप) : तो-र-न्-पु (←त्-र-न्-प्)]

कई परिस्थितियों में शब्दों के अंत में डबल व्यंजनीकरण [-त्तो][-द्दो]
[ex;バグダッド (बग़दाद) : ब-गु-द-द्दो (←ब-ग्-द-द्)]

* ऐसे डबल व्यंजनों के लिए छोटे "त्सु" [-っ-/-ッ-, (+व्यंजन)] लिखते हैं.
[-क्क्-/-स्स्-/-त्त्-/-च्च्-/-प्प्-, (-ग्ग्-/-द्द्-/-ज्ज्-/-ब्ब्-/-र्र्-/-श्श्-; विदेशी मूल के शब्दों में) ]


3.[च्/ज्] = + [इ]
[ex;ビーチ (beach, बालू भरे समुद्रतट) :बी-चि (←बी-च्)]

* अँग्रेज़ी मूल के शब्द में शब्दांत पर आने वाले [र्] ब्रिटिश-अंग्रेज़ी बोली के उच्चारण की तरह मिट जाता है.
[-er: -आ (←-अर्/-आर्)]
फिर भी अपवाद; [ビール (beer, बियर्) : बी-रु]


जापानी में भी [अ-आ] जैसे छोटे-लंबे स्वरों के बीच फ़र्क़ होता है. लंबे स्वर लिखित रूप में एक छोटे स्वर वाले अक्षर के बाद,
1; उसी स्वर का स्वर-अक्षर दोहराकर
[ex; おばあさん (दादी-नानी, बूढ़ी महिला) :बोलने को ओ-बा-सन्, लिखने को ओ-बअ-सन् ]

2; एक सपाट रेखा [ー] जोड़कर
[ex; デリー (दिल्ली) : दे (छोटा-ए) -री ]


फिर भी स्वर-लंबाई हिंदी की तुलने में अलग-थलग सी सुनाई देती होगी तो कुछ मुश्किल भी होता है. ख़ुसूसन किसी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ (proper nouns), लोगों-जगहों के नामों को एक दूसरी भाषा व लिपि में अंतरण करने के लिए.
जा→हिं अंतरण में स्वर-संतुलन की आवश्यकता है. हिंदी (तथा शायद कुछ अन्य उत्तर भारतिय भाषाओं) में स्वर [ए] और [ओ] आम तौर लंबे ही होते हैं. देवनागरी लिपि में व्यंजन-अक्षर [क/ग/ख...] का छोटा स्वर "अ" शब्द के कहीं बीच और अंत में मिट जाता है, और अरबी-फ़ारसी लिपि में तीन छोटे स्वर "अ/इ/उ" ज़ाहिर नहीं हैं, सो संतुलन करने को कभी कभी छोटे स्वर को लंबे स्वर से लिखना [अ→आ/इ→ई/उ→ऊ] ज़रूरी है.

वैसे मिसाल के लिए ऊपर लिखा शब्द
"हीरा-गाना"
तक़रीबन असली ध्वनिओं से देखें तो [ह्-इ र्-अ ग्-अ न्-अ] है, फिर इसको हिरगन ही लिखे तो [हि र् ग न्] पढ़ेंगे.

लेकिन स्वरों की लंबाई में संतुलन लाने के लिए कुछ हद तक स्वच्छंद प्रयोग की स्वतंत्रता अभी भी बची हुई है. अगर आगे सालों में जापानी शब्द बहुत हिंदी में आ जाएँ तो, निश्चित रूप में शब्द अंतरण का नियम बन जाएगा, शायद.

*1जापानी में ये बुनियादी पंचस्वर मूलतः सब छोटे स्वर होते हैं. छोटा [ए], जैसे 'पहला' के "-ह-" वाला स्वर होता है, और छोटा [ओ], जैसे 'बहुत' के "-हु-" वाला स्वर होता है.

*2जापानी भाषा में [क-ख] जैसे अल्पप्राण-महाप्राण (unaspirated/aspirated) व्यंजनों का अंतर पहचाना नहीं जाता, मगर कभी कभी अनजाने में ही महाप्राण से बोला भी जाते हैं कुछ शब्द, ख़ासकर वाक्य का पहला व्यंजन जिसके उच्चारण के लिए अधिकाँश तौर पर कहीं ज़ोर दिया जाता है.

*3[सि] (या [सी]) के उच्चारण के बजाय [शि] (या [शी]) ही होता था. आज तो युवा पीढ़ियाँ सुन-बोलकर पहचान सकती हैं. फिर भी आम तौर पर अख़बार जैसे लिखित भाषा में "शि" का ही प्रयोग उचित माना जाता है. सुना है, कोरिया भाषा में भी ऐसा होता है.
[ex; シーディー (CD, CompactDisc) : शी-दी (←सी-दी) ]

*4[ति] (या [ती]) के उच्चारण के बजाय, [चि] (या [ची]), ही होता था. मगर यह अंतर आजकल ज़्यादा लोग सुन-बोलकर पहचान सकते हैं.
[ex; チーム (team, दल) : ची-मु (←ती-मु)]

*5[तु] (या [तू]) के उच्चारण के बजाय, [त्सु] (या [त्सू]) ही होता था. यह अंतर भी आजकल ज़्यादा लोग सुन-बोलकर पहचान सकते हैं.
[ex; ツール (tool, औज़ार) : त्सू-रु (←तू-रु) ]

*6रोमन-लिपि में [hu] नहीं बल्कि [fu] लिखते हैं, शायद ताकि अंग्रेज़ी भाषा के तरीके से, यानी "huge" या "human" वाले ह्यू की तरह, न पढ़ा जाए. फिर भी जापानी भाषा के [ふ] [フ] का उच्चारण अंग्रेज़ी भाषा के [fu] की तरह दांत से नीचे होंठ थोड़ा लगाकर तो नहीं किया जाता है.

*7जापानी भाषा में व्यंजन [र्-] और [ल्-] के बेच अंतर नहीं पहचाना जाता है. मामूली तौर पर रोमन-लिपि में [r] से वर्णन किया जाता है, इस लिए सहज जापानी भाषियों के कानों में विदेशी मूल शब्दों के [ल्-] (और हिंदी के [ड़्-] [ढ़्-] भी) सुनकर अधिकाँश तौर पर [र्-] के रूप में समझा जाता हैं, तो ऐसे ही बोला-लिखा जाता भी हैं. मगर दूसरी तरफ़, यानी जापानी भाषा के [ら][り][る][れ][ろ] में व्यंजन का उच्चारण पर देखा जाए तो मूलतः न तो [र्-] होता है न [ल्-], बल्कि दोनों के कहीं बीच में आ सकता है. लेकिन आप के लिए बोलना कोइ मुश्किल काम नहीं, आप [र्-] का व्यंजन में बोले तो काफ़ी है.

*8[ゐ] [ヰ], [ゑ] [ヱ] इन अक्षरों को आधुनिक प्रयोग में [い][イ], [え][エ] से विनिमय किया गया है. इस लिए इन अक्षरों का आधिकारिक प्रयोग बहुत कम ही होता गया है. अब ये अक्षर बूढ़ी महिलाओं के नामों आदि में ही देखने को मिल सकते हैं.

*9पहले इस अक्षर का उच्चारण "वो" की तरह किया जाता था. मगर आधुनिक जापानी भाषा में पंचस्वर के [お][オ] से सामान उच्चारण किया जाता है. व्याकरण की दृष्टि से यह अक्षर कर्म (an object) के शब्द को सूचित करता है इस लिए आम तौर पर अखबार आदि लिखित सामग्री पर बहुत प्रयोग होता है.

*10यह अक्षर का उच्चारण पीछे व्यंजन से बदलता है.
[ङ्-;-क्/-ग्, ञ्-;-च्/-ज्, म्-;-प्/-ब्]
ख़ासकर पीछे पर स्वर आता है तो [न्] के बाद क्षण भर वक्फ़ा रखकर स्वर का उच्चारण करना चाहिए.
[न् + अ/इ/उ/ए/ओ = न्'- vowel]
मसलन,
"Junichiro" Koizumi, जापान के पूर्व-प्रधानमंत्री का नाम भी "जुन्'इचिरो" की तरह बोलना चाहिए, न जुनिचिरो.




बाक़ी व्यंजनों वाले अक्षर लिखने के लिए ऊपर की पचासा ध्वनि सूची अक्षरों के दाएँ-ऊपर अंग पर छोटे दो नुक़्ते [゛] या छोटा चक्र [゜] लगाते हैं, या छोटे स्वर [अ/इ/ए/ओ] - अधस्वर [य/यु/यो] अक्षर पीछे पर रखते हैं.

- गि - गु - गे - गो
ज़ - *11जि - ज़ु - ज़े - ज़ो
- *12जि - *13ज़ु - दे - दो
- पि - पु - पे - पो
- बि - बु - बे - बो

*11[ज़ि] (या [ज़ी]) के उच्चारण के बजाय [जि] (या [जी]) का ही होता था. मगर आजकल युवा पीढ़ियाँ सुन-बोलकर पहचान सकती हैं. फिर भी अख़बार जैसे लिखित भाषा में आम तौर पर "जि" का ही प्रयोग होता है.
[ex; イージー (easy, आसान) : ई-जी (←ई-ज़ी) ]

*12[दि] (या [दी]) के उच्चारण के बजाय, [जि] (या [जी]) का ही होता था. मगर आजकल ज़्यादातार लोग सुन-बोलकर पहचान सकते हैं.
[ex; ガンジー (गांधी) : ग-न्-जी (←ग-न्-दी)]

*13[दु] (या [दू]) के उच्चारण के बजाय, [ज़ु] (या [ज़ू]) का ही होता था. मगर आजकल ज़्यादातार लोग सुन-बोलकर पहचान सकते हैं.
[ex; ヒンズー (हिंदू) : हि-न्-ज़ू (←हि-न्-दू) ]



ये ध्वनि व अक्षर मूलतः चीनी भाषा मूल के शब्दों के लिए जापानी भाषा में अपनाए गए हैं. इस लिए कांजी में लिखे जाने वाले शब्दों के उच्चारण के लिए सुनने को मिलेगा, पर इससे सीमित नहीं है और अन्य बहुत विदेशी मूल के शब्दों के लिए भी प्रयोग हो सकता है.

きゃ キャ क्य - きゅ キュ क्यु - きょ キョ क्यो
ぎゃ ギャ ग्य - ぎゅ ギュ ग्यु - ぎょ ギョ ग्यो
しゃ シャ - しゅ シュ शु - しょ ショ शो
じゃ ジャ - じゅ ジュ जु - じょ ジョ जो
ちゃ チャ - ちゅ チュ चु - ちょ チョ चो
にゃ ニャ न्य - にゅ ニュ न्यु - にょ ニョ न्यो
ひゃ ヒャ ह्य - ひゅ ヒュ ह्यु - ひょ ヒョ ह्यो
ぴゃ ピャ प्य - ぴゅ ピュ प्यु - ぴょ ピョ प्यो
びゃ ビャ ब्य - びゅ ビュ ब्यु - びょ ビョ ब्यो
みゃ ミャ म्य - みゅ ミュ म्यु - みょ ミョ म्यो
りゃ リャ र्+य - りゅ リュ र्+यु - りょ リョ र्+यो



ये ध्वनि व अक्षर मूलतः विदेशी भाषा मूल के शब्दों के उच्चारण को वर्णन करने के लिए ही अपनाए गए हैं. इस लिए आम तौर पर काता-काना लिपि में ही लिखे जाते हैं.

ふぁ ファ फ़ - ふぃ フィ फ़ि - *14 - ふぇ フェ फ़े - ふぉ フォ फ़ो
*15 - うぃ ウィ *16वि - *17 - うぇ ウェ वे - うぉ ウォ वो
*18 ヴァ *19 - ヴィ वी - वु - ヴェ वे - ヴォ वो


しぇ シェ शे
じぇ ジェ जे
ちぇ チェ चे
すぃ スィ सि
ずぃ ズィ ज़ि
てぃ ティ ति
でぃ ディ दि
とぅ トゥ तु
どぅ ドゥ दु

*14 = *6"फ़ु"

*15 = पच्चासा ध्वनि का "व"

*16अँग्रेज़ी के व्यंजन [w] वाला "व", न [v].

*17 = स्वर "उ"

*18हीरा-गाना लिपि में फ़ोंट नहीं है, शायद इसलिए कि आम तौर पर ये काता-काना लिपि से ही लिखे जाते हैं.

*19अँग्रेज़ी के व्यंजन [v] वाला "व"




मेरी इतनी भाषावैज्ञानिक जानकारी नहीं है, इस लिए मेरी ऊपर लिखी बातों में कहीं कुछ ग़लती निकली तो बता दीजिएगा.
लेकिन मेरा मकसद आपको यह समझाना था कि मैं अक्सर कैसी तरह जापानी-हिंदी के शब्दों को एक दूसरी लिपि में वर्णन करता हूँ. जापानी-हिंदी के बीच या दूसरी भाषा होकर बहुत शब्द आते-जाते हैं, जिनमें से ज़्यादातर शब्द किसी न किसी वजह से ग़लत रूप में वर्णन किए हुए फ़ेलाए जाते हैं. ऐसी ग़लतियाँ आपस में पैदा हो जाती हैं जब दोनों भाषाओं की ध्वनि-संरचनाओं और इनकी विशेषताओं से अनजानी होते हैं. यह रहा मेरा इरादा, यानी, ऐसी ग़लतियाँ रोकने की छोटी सी कोशिश.

जनवरी 06, 2005

क्या काम होता है भाषा सीखना !?

ज़बानें सीखना लगता है अपना जहान और बड़ा-चौड़ा बनाने जैसा काम. मेरे लड़कपन, हाइस्कूल के दिनों में तो अंग्रेज़ी की कक्षा में सोचा था दुनिया देखूँगा अंग्रेज़ी के ज़रिए से. हाँ, वैसे देख तो सकते हैं और ज़रूरत भी पड़ती है कहीं देश के बाहर रवाना होना हो तो. फिर भी सोचा है कि जो दुनिया अंग्रेज़ी की खिड़की के बाहर ही देखें वह तो पूर्ण रूप से ' दुनिया ' कह सकते हैं या नहीं? इस सारी दुनिया में ज़्यादातर लोग मातृभाषा के रूप में अंग्रेज़ी नहीं बोलते, और शायद ऐसे लोगों से अधिक लोग अंग्रेज़ी जानते भी नहीं होंगे, जिनने अंग्रेज़ी सीखके अपना ले पाई है. क़रीब आ जाएँगे अगर जिससे बात करने को है उसकी ज़बान या दोनों की ज़बानों में सीधी बात हो सके तो? अभी अपनी ख़्याल यहाँ लिखता हूँ और दूसरों के ब्लॉग में उनकी ख़्यालात देखता हूँ हिंदी भाषा के ज़रिए से, यह किसी दूसरी ज़बान में तो हो सकता ऐसे ही?

मगर और एक मसला भी. इंडिया जैसे बहुभाषीय समाज में तो बात और जटिल होगी. यानी, राजभाषा हो या बॉलीवुड फ़िल्मों की हो, हिंदी भी इंडिया में सब लोगों की नहीं है. दक्षिण में कम ही लोग जानते हैं, उत्तर में जानते-बोलते तो भी ज़्यादा लोग अपने घर में स्थानीय भाषा बोलते हैं. हिंदी भाषा भी ख़ुद के अंदर बहुत सी बोलियाँ होती हैं. क़रीब आते आते तो भी बीच में दूरी रहती जाएगी.

हाँ, यह ऐसी बड़ी मज़दूरी होगी कि कोई न यक़ीन करे उसमें फ़ायदा होगा. और वह भी सच होगा कि बात सिर्फ़ ज़बान से नहीं होती. हमज़बानों के बीच कभी झगड़े भी होते हैं लड़ाई भी. बदले में कभी ज़बान ज़रूरी ही नहीं दोस्ती के राह में. हरेक अपनी शख़्सियत से आपस में बात हो जाती है.

...तो फिर शख़्सियत क्या, हर किसी के लिए अपनी स्थानीय भाषा व अपनी बोली उसकी शख़्सियत का कहीं एक बड़ा अहम हिस्सा होगी, जो ज़िंदगी भर कभी भूला या खोया नहीं जाएगा. और किसी के लिए ऐसी एक ही नहीं, कई हो सकती हैं. इसी लिए जितनी दोस्ती करने का जज़्बा हो जिससे, उतनी काफ़ी फ़ायदा होगा उसकी ज़बान सीखने का. बेमतलब सी कोशिश भी जिसको ऐसी लगती हो तो करने लायक है.

मुझे यही सूझा है जब टी.वी. पे एक बूढ़े मर्द का दास्तान देखा. उनकी उम्र अब 102 साल की है और पेशे से एक विशेष स्कूल स्थापित करके अध्यक्ष का काम करते है, जहाँ ऐसे बच्चों के लिए अच्छी पढ़ाई मुहैया कराते हैं जो बच्चे अपनी दिमाग़ी तकलीफ़ों की वजह से आम स्कूल की शिक्षा से इनकार किए गए हैं, क्योंकि पहले उन ख़ुद के संतान को भी वही हुआ था. जब वे 95 साल के थे, उनको पता चला कि चीन में ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत न सुविधाएँ उपलब्ध हैं न तैयार. उस समय से चीनी भाषा सीखना शुरू किया ताकि चीन में शिक्षा का अपना दानिश-तरीक़ा सिखा सकें. कोरियन भाषा भी 70 साल के समय सीखना शुरू किया तो अब उनको अच्छी तरह आती है. वे कहते हैं, ज़िंदगी इतनी लंबी तो होती है कि कभी तक भी कोई कोशिश करने में नालायक न हो, और कुछ नया करने को कभी भी देर तो नहीं है. यह सुनके साहस दिलाया गया जैसा लगा.

पर मैं भी उनके कहे से जोड़के और एक बात मानता हूँ. ज़िंदगी का समय सीमित भी होता है. केवल इधर से उधर ज़्यादा टूटी-फूटी भाषाएँ याद करके भूल जाने से अच्छी तरह कई ही सीख लेना और फ़ायदेमंद होगा. शायद मेरा समय बहुत बाक़ी होगा, कोशिश तो करता जाऊँगा....